पिंजरे की कहानी
"मेरे घर की खिड़की की छांव ने मुझे एक पिंजरे की तरह महसूस कराया। उस पिंजरे की कहानी, उसकी भावनाएं और परिंदों के संग उसके रिश्ते को महसूस किया। #पिंजरेकीकहानी #कहानीतुम्हारीहमारी"
कविता
Jayashree Thitme
12/29/20241 मिनट पढ़ें


एक शांत रात, मैं अपने घर के खिड़की पर बैठी थी। खिड़की से गिरती छांव को देखा, और वह मुझे किसी पिंजरे की छवि जैसी प्रतीत हुई। यह खिड़की की छांव केवल छाया नहीं थी, वह एक कहानी थी—एक खाली पिंजरे की कहानी।
इस पिंजरे के भीतर मैंने परिंदों की आजादी, उनकी खूबसूरती, और उनका मेरे जीवन में महत्व महसूस किया। पिंजरा सिर्फ एक वस्तु नहीं है; यह भावनाओं, जुड़ाव, और एक अनकही कशमकश का प्रतीक है।
यह कविता उसी अनुभव का प्रतिबिंब है। पिंजरे का खालीपन उसे परिंदों से भरने की कोशिश करता है, उनकी सुरक्षा और उनकी अहमियत बढ़ाता है। फिर भी, पिंजरे को अक्सर दरिंदा समझा जाता है, क्योंकि वह आजादी के खिलाफ प्रतीत होता है।
लेकिन क्या पिंजरा वास्तव में गलत है? या वह भी एक स्थिति का शिकार है? यह सवाल हर पाठक को अपनी कहानी से जोड़ता है। शायद हम सभी किसी न किसी रूप में पिंजरे की स्थिति का अनुभव करते हैं।
ब्लॉक का नाम: कहानी तुम्हारी हमारी
कविता का नाम: पिंजरे की कहानी
यह कविता आपको भी आपके जीवन के उन पहलुओं से जोड़ देगी, जो अनकही कहानियों से भरे हैं।
"मैंने जो लिखा है, वह आपको कैसा लगा? आपके विचार, सुझाव, या अनुभव जानने की उत्सुकता है। अगर कोई कन्फ्यूजन या सवाल हैं, तो कमेंट में ज़रूर बताएं—आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है!"
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खाली पिंजरा हूँ मैं
कोशिश करता रहता हूँ
परिंदों से खुद को भर सकूं
पर मैं तो पिंजरा हूँ
भूल जाता हूँ
कुछ न ठहरता मेरे पास
सिवाय हसीन परिंदों के
उन्हें सबसे बचता हूँ
उन्हीं के बारे में सोचता हूँ
उनकी अहमियत बढ़ाता हूँ
फिर भी दरिंदा कहलाता हूँ।