"खुद का खुदी से डर"

इस शेर "इतना भी न ले इम्तिहान ए ईश्वर" में भाई की चार ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान की गहरी भावनाएं व्यक्त की गई हैं। खुद का खुद ही से डर ने इस अनुभव को और भी कठिन बना दिया। हर सर्जरी के साथ अनिश्चितता बढ़ती गई।""खुद का खुदी से डर"

शेर

Jayashree Thitme

10/6/20241 मिनट पढ़ें

kale Badal
kale Badal

"इतना भी न ले इम्तिहान ए ईश्वर" इस शायरी में छिपी भावनाओं का बखान करते हुए, मैं अपने दिल की गहराइयों में चल रही हलचल को साझा करना चाहती हूं। मेरे भाई की चार ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान जो दर्द और चिंता मैंने अनुभव की, वह शब्दों में नहीं कह सकती। जब वह पहली बार ऑपरेशन के लिए गया, मेरा मन अनगिनत विचारों से भर गया। मुझे डर था कि क्या वह लौटेगा या नहीं। हर सर्जरी के दौरान, वही सोच मुझे परेशान करती रही।

जब मैं उस शांत मंदिर में बैठी थी, जो अस्पताल के पास था, मैंने भगवान के सामने अपनी चिंताओं को रखा। उस वक्त की खामोशी में मुझे अपनी भावनाओं का सामना करना पड़ा। आँखों से आंसू बहते रहे, क्योंकि हिम्मत जुटाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। उस मंदिर की शांति ने मुझे सुकून दिया, लेकिन साथ ही मेरी चिंताओं को भी उजागर किया। उस जगह की चुप्पी में मैंने अपने अंदर के डर और संकोच को महसूस किया।

इतना भी न ले इम्तिहान ए ईश्वर,

खुद का ही न लगने लगे खुद ही से डर।

समुद्र की लहरों की तरह, मेरी भावनाएं मुझ पर टूटकर गिर रही थीं। कभी-कभी ऐसा लगता था जैसे मैं उन लहरों के बीच खो गई हूं, और मेरे डर और चिंताएं मुझे डुबोने की कोशिश कर रही हैं। परंतु, मैं अपने भाई के प्रति अपने प्यार और चिंता को व्यक्त नहीं कर पा रही थी। उस क्षण में, मेरे दिल में एक गहरी खाई थी— एक ऐसा डर जो हर सर्जरी के साथ बढ़ता गया।

यह शायरी मेरी यात्रा का एक हिस्सा है, जिसमें मैंने अपने भीतर के तूफान को महसूस किया।

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