यादों की याददाश्त: दोस्ती और धुंधली यादों की कहानी

"कहानी तुम्हारी हमारी" इस ब्लॉग में पेश है "यादों की याददाश्त: दोस्ती और धुंधली यादों की कहानी—एक शेर जो दोस्ती और यादों के धुंधलेपन की दास्तां को बयां करता है।

शेर

Jayashree Thitme

12/9/20241 min read

एक व्यक्ति दूर घाटी की ओर देखते हुए
एक व्यक्ति दूर घाटी की ओर देखते हुए

शेर

"आपकी याद ना आने में यादों का क्या कसूर है,

वो तो यादों की याददाश्त कम हो चली है।"

कहानी

कभी-कभी दोस्ती में खामोशियां भी एक कहानी बन जाती हैं। यह कहानी है मेरी और मेरी उस दोस्त की, जिसके साथ कभी हर बात साझा होती थी। एक वक्त आया जब हमारे विचारों के बीच दरारें पड़ने लगीं। बातों का सिलसिला रुका और वक्त के साथ दूरी बढ़ती गई।

हमारे बाकी दोस्त पूछते, "तुम्हें उसकी याद नहीं आती?" मैं हंसकर कहती, "नहीं।" लेकिन वो सवाल मेरे अंदर कहीं गूंजता रहा। क्या सच में मुझे उसकी याद नहीं आती?

एक दिन मैंने खुद से पूछा, और जवाब मिला—सच में, यादें धुंधली पड़ चुकी हैं। वो चेहरे, वो बातें, सब कहीं खो से गए हैं। शायद मेरी यादों की याददाश्त कमजोर हो चली है। उसी एहसास ने मुझे यह शायरी लिखने की प्रेरणा दी।

"यादों की याददाश्त" सिर्फ मेरी कहानी नहीं है। यह उन सभी रिश्तों की दास्तां है, जो वक्त की रेत पर धीरे-धीरे बह जाते हैं। कभी हमारे दिल के करीब थे, अब धुंधली परछाईं बनकर रह गए हैं।

"कहानी तुम्हारी हमारी" में जब मैंने इसे लिखा, तो ऐसा लगा जैसे वो भूली-बिसरी यादें कागज़ पर अपनी जगह तलाश रही हों। शायद यह शायरी उन रिश्तों का दस्तावेज़ है, जिनकी यादें हमें अब भी चुपके से छू जाती हैं।

तो आइए, इस शायरी के साथ उस खालीपन को महसूस करें, जो यादों की धुंध में कहीं खो गया है। शायद आप भी किसी भूली हुई याद में अपना हिस्सा ढूंढ़ लें।

"आपकी याद ना आने में यादों का क्या कसूर है,

वो तो यादों की याददाश्त कम हो चली है।"

"मैंने जो लिखा है, वह आपको कैसा लगा? आपके विचार, सुझाव, या अनुभव जानने की उत्सुकता है। अगर कोई कन्फ्यूजन या सवाल हैं, तो कमेंट में ज़रूर बताएं—आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है!"

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