"छोटे-छोटे पलों के भीतर की आवाज़"
इस पोस्ट "छोटे-छोटे पलों के भीतर की आवाज़" में हम उन खास पलों की बात करेंगे, जब हम शब्दों के साथ खो जाते हैं और अपने विचारों में डूब जाते हैं। कभी-कभी बस यूं ही लेटे रहना और खिड़की से बाहर की हरियाली के क्षणों में, हम अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालते हैं, तो हम न केवल अपने अनुभवों को व्यक्त करते हैं
शेर
Jayashree Thitme
10/6/20241 min read
जब हम अपनी जीवन की भागदौड़ से दूर होते हैं, तब अक्सर हमें अपनी सोच में गहराई से डूबने का मौका मिलता है। ऐसे ही एक पल में, जब मैं अपने बिस्तर पर लेटी थी, बाहर की हरियाली ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। उस समय, पंछियों की चहचहाहट ने मेरे मन को शांति दी, और मैं अपने विचारों में खो गई।
मेरे मन में एक विचार आया:
"कभी-कभी लगता है बस यूं ही पड़े रहे
और लफ्जों के साथ इश्क लड़ाते रहे।"
यह पंक्ति मेरे लिए एक नई दुनिया खोलने जैसी थी। शब्दों में कितनी ताकत होती है, यह मैंने उस पल महसूस किया। वे हमारे अनुभवों को व्यक्त करने का एक माध्यम बनते हैं।
अचानक, मेरे मन में अनेक विचार तैरने लगे। जैसे मैं उन्हें अपनी शायरी में समेट सकूं। यह एक अनोखा अनुभव था, जहाँ मैंने पाया कि जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में भी गहराई होती है। जब हम अपने भीतर के विचारों को समझते हैं और उन्हें शब्दों में ढालते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को एक नया रूप देते हैं।
इस तरह के पल हमें याद दिलाते हैं कि विचारों में डूबना एक खूबसूरत प्रक्रिया है। कभी-कभी, बस यूं ही पड़े रहकर अपनी सोच के रंगों में रंगना हमें एक नई दृष्टि देता है। ये अनुभव हमें शब्दों में जीवंतता और गहराई देते हैं, जो हमारी रचनात्मकता का आधार बनते हैं।
इसलिए, हमें इन क्षणों की महत्ता को समझना चाहिए, जब हम अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकते हैं।
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