कलम और घटते मन का तराना
"कलम और घटते मन का तराना" शायरी में मन की भावनाओं की गहराई को शब्दों में पिरोया गया है। यह उन क्षणों की कहानी है, जब हम अकेले होते हैं और किसी से अपनी भावनाएँ साझा नहीं कर पाते। इस कविता में एक ऐसी यात्रा का वर्णन है, जहां मन की विचलन और शब्दों की कमी का अनुभव किया जाता है। यह शायरी उन लोगों के लिए है जो अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए सिर्फ शब्दों का सहारा नहीं लेते, बल्कि हर माध्यम का उपयोग करते हैं।
शायरी
Jayashree Thitme
10/7/20241 min read


कभी-कभी जीवन की चुनौतियों में हम खुद को अकेला महसूस करते हैं।
"चल ए कलम,
विचल है मन,
घट रहे हैं हम,
आपका घिस-घिस चलना,
और हमारा घुट-घुट घटना ,
करेगा निर्माण, लफ्ज़ ए तराना।"
ये शब्द मेरे मन की उस गहराई को व्यक्त करते हैं, जब हम अपनी भावनाओं को समझने और अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं।
इस शायरी में, मैंने अपने अकेलेपन और मन की स्थिति को कलम के माध्यम से व्यक्त किया है। यह उन लम्हों की कहानी है, जब शब्दों की कमी महसूस होती है और मन विचलित होता है। जब दुनिया में कोई अपना नहीं होता, तो वही कलम हमारे विचारों को बाहर निकालने का सहारा बनती है।
यह शायरी उन सभी के लिए है जो अपने मन के भावनाओं को किसी न किसी माध्यम से व्यक्त करते हैं। मैंने महसूस किया कि हर व्यक्ति के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक तरीका होता है। कुछ लोग शब्दों का सहारा लेते हैं, कुछ चित्रों के माध्यम से, और कुछ अपने नृत्य के जरिए।
इस तरह, "कलम और घटते मन का तराना" केवल एक कविता नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर की गहराईयों में छिपी भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जो हर किसी को अपने तरीके से समझने का मौका देती है।
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