अश्कों की दास्तां

"अश्क अपनी दास्तां कह रहे हैं—अगर कोई उन्हें थाम लेता, तो बहने का गम भी खुशी में बदल जाता। | इस शेर की ये कहानी किसी की भी हो सकती है। क्योंकि अश्क तो सबकी कहानी कह सकते हैं | कहानी तुम्हारी हमारी: अश्कों की दास्तां"

शेर

jayashree Jitendra Thitme

11/28/20241 min read

जीवन की हर गहराई अश्कों में छुपी होती है। कुछ अश्क बहते हैं, तो कुछ थम जाते हैं। यह दास्तां है उन अश्कों की, जो कभी आंखों से गिरे ही नहीं, बस भीतर कहीं दबे रह गए।

कई बार ऐसा होता है कि अश्कों से घिरा हुआ महसूस होता है। जब अकेलापन पास आता है, या जब कोई खास ख्वाहिश पूरी नहीं होती, तो यही अश्क साथ देते हैं। हर बार यह एहसास होता है कि उम्मीदें किसी से क्यों रखी जाएं? लेकिन फिर मन समझाता है—इंसान ही तो हैं, कभी अच्छा लगता है, तो कभी बुरा।

ऐसा भी होता है जब अपनी ख्वाहिश किसी के सामने रखना भारी लगता है। इच्छाएं छोटी होती हैं, लेकिन शायद सामने वाले की सोच उनसे मेल नहीं खाती। ऐसा लगता है जैसे बातें कहीं सुनाई ही नहीं दे रहीं। उस वक्त अश्क बहुत करीब लगते हैं।

लेकिन इस कहानी में न कोई शिकवा है, न शिकायत। क्योंकि यही तो जिंदगी है—कभी कुछ मिलता है, कभी छूट जाता है। सुख-दुख साथ-साथ चलते हैं। और जब कोई साथ देने वाला हो, तो यही अश्क भी बोझ नहीं लगते।

इस शेर की ये कहानी किसी की भी हो सकती है। क्योंकि अश्क तो सबकी कहानी कह सकते हैं।

"इन अश्कों पर भी कोई बांध डालने वाला मिलता,

हमें भी बह जाने का गम न होता।"

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