"धुएँ की अपनी कहानी"

धुएँ की अपनी कहानी:"धुएँ की अपनी कहानी"इस कविता में बारिश के बाद की शाम, पत्तों से पानी की बूंदें और जलते कोयले से उठता धुआँ। यह पल मेरे मन के भीतर की कहानी और धुँए कि अपनी कहानी बयां करता है।

कविता

Jayashree Thitme

10/31/20241 मिनट पढ़ें

"धुएँ की अपनी कहानी".......

लोग कहते हैं मुझे धुआँ-धुआँ,

सुलझती दाह से जन्मा रुआँ-रुआँ।

इतराना नहीं चाहता मैं यहाँ-वहाँ,

फिर भी ले चला पवन मुझे कहाँ-कहाँ।

मेरी मस्ती उसी से, मेरी हस्ती उसी से,

मेरी समाप्ति भी तो उसी से है।

लोग कहते हैं मुझे धुआँ-धुआँ।

एक शाम, जब बारिश थम गई थी और पत्तों से पानी की बूंदें टपक रही थीं, मैंने अपने आँगन में बैठकर आस-पास के माहौल को महसूस किया। पंछी अपने घर लौट रहे थे, और सूरज बादलों के पीछे छिपा हुआ था। धुएँ की हल्की सी लकीर ने मन को एक अजीब सा एहसास दिया, जैसे कोई मेरे अंदर की बातों को जानता हो।

तब मैंने देखा, कोयले की आग से निकले अंगारे धीरे-धीरे जलने लगे थे, जैसे वे मुझसे कुछ कहना चाह रहे हों। मुझे समझ में आया कि धुएँ का यह सफर भी किसी कहानी से कम नहीं है। यह कहानी हमारे जीवन के संघर्षों, उम्मीदों और इच्छाओं को छुपाए हुए है।

मैंने इस पल को महसूस किया और इस पर कविता लिखी, जिसमें मैंने धुएँ के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। यह कविता धुएँ के जादू और उसके साथ बिताए गए क्षणों का बखान करती है, जिसमें हर अंगारा एक नई कहानी बुनता है।

इस कविता के माध्यम से मैंने अपनी यात्रा का चित्रण किया है, जो धुएँ की अपनी कहानी को बयां करती है। यह कहानी न केवल धुएँ की है, बल्कि हमारे जीवन के उन पलों की भी है, जब हम अपने भीतर की आवाज़ को सुनते हैं। इस कविता के शब्दों में वह सब कुछ है, जो मैंने उस शाम महसूस किया।

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