"चंचल लहरों की शरारत"
"चंचल लहरों की शरारत" एक यादगार सुबह का अनुभव है, जब समुद्र की लहरें मुझे अपने पास बुला रही थीं। मेरी भावनाएं इस खेल में झलकती हैं, जहां मैं अपने डर को पीछे छोड़कर, मासूमियत से खेलने का मन बना रही थी। क्या हम कभी अपने अंदर के बच्चे को अपने साथ नहीं रखते? इस क्षण में, लहरों के साथ मेरा संवाद एक नई समझ और जज़्बात का एहसास दिलाता है।
शेर
Jayashree Thitme
10/6/20241 मिनट पढ़ें


सुबह की पहली किरणों के साथ जब मैंने समुद्र के किनारे कदम रखा, तो एक अद्भुत दृश्य मेरे सामने था। चंचल लहरें, जैसे मुझसे खेलने के लिए बेताब थीं, दौड़कर मेरे पास आतीं और फिर अचानक पीछे हट जातीं। यह एक अनोखा अनुभव था, जहां मैं अपने कैमरे के साथ खड़ी थी, लेकिन लहरों की शरारती हरकतें मुझे भिगोने के लिए आमंत्रित कर रही थीं।
समुद्र की आवाज़ ने मुझे आकर्षित किया और मेरे दिल में एक अनोखी ख़ुशी का संचार किया। हर लहर के साथ, जैसे वह मुझे बुला रही थी कि आओ, मेरे साथ खेलो। लेकिन मैं थोड़ी डरी हुई थी; कहीं मेरे कपड़े गीले न हो जाएं, कहीं कैमरा खराब न हो जाए। इस नाजुक संतुलन में, मैं अपनी शरारत और लहरों की शरारत के बीच एक अजीब संवाद कर रही थी।
दौड़कर चंचल लहरें हमें भिगोने आईं,
खामोश खड़े हम बहाने बनाते गए।
ना वह शरारत छोड़ पाए,
ना हम शरारत जोड़ पाए।
मेरा मन और समुद्र दोनों मिलकर एक ख़ामोश संवाद कर रहे थे। लहरों की चंचलता, उनकी शरारत, और मेरी सोच का टकराव—यह सब एक अद्भुत कहानी बना रहा था। मैं चाहती थी कि मैं उस क्षण में समर्पित हो जाऊं, लेकिन मेरे डर ने मुझे पीछे खींच लिया। हर लहर ने मेरे दिल की धड़कन को बढ़ा दिया, जैसे वो मेरी हिम्मत को परख रही हो।
जैसे ही मैंने एक लहर को अपने पैरों के पास महसूस किया, एक ठंडी हवा ने मुझे चौंका दिया। मैंने अपने भीतर की आशंका को महसूस किया, पर साथ ही, मैंने उस क्षण की जादुई सुंदरता को भी। यह सब कुछ मेरे लिए एक अनूठा अनुभव बन गया, जो केवल समुद्र और मेरी सोच के बीच की नाजुक कड़ी थी।
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