अनाड़ी से खिलाड़ी तक की कहानी
"खेल का असली मज़ा तब है जब आपका साथी उपकरण नहीं, बल्कि सफर का हिस्सा बने। जानिए इस सफर की पूरी कहानी: कहानी तुम्हारी हमारी में'अनाड़ी से खिलाड़ी तक की कहानी।'"
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Jayashree Thitme
12/29/20241 मिनट पढ़ें


"खेल का असली मज़ा तब आता है, जब आपका साथी—चाहे वह इंसान हो, ब्रश हो, सुई-धागा हो, या एक गेंद—आपके साथ खेलने लगता है। तब वह सिर्फ एक उपकरण नहीं रहता, बल्कि आपकी यात्रा का हिस्सा बन जाता है।
शुरुआत में, वह गेंद मेरे लिए बस एक चीज़ थी, कोने में चुपचाप पड़ी हुई। लेकिन एक दिन, मैंने उसे उठाया और ज़मीन पर पटका। वह लुढ़क गई, जैसे मुझसे नाराज़ हो। मैंने फिर कोशिश की, और उसने हल्के से उछलकर जवाब दिया। यह शुरुआत थी हमारी अनकही बातचीत की।
दिन गुज़रते गए। हर उछाल, हर गिरावट में जैसे वह मुझे समझने लगी, और मैं उसे। अब वह सिर्फ एक गेंद नहीं थी। वह मेरी साथी बन गई थी। उसकी हर हरकत जैसे मुझसे कहती, "चलो, अब खेल शुरू करते हैं।"
उस दिन मैंने महसूस किया कि असली खेल का मज़ा हर किसी के लिए अलग हो सकता है। कोई इसे जीतने के लिए खेलता है, कोई इसे बस पल का आनंद लेने के लिए। और कोई इसे उस रिश्ते के लिए खेलता है, जो वह अपने साधन के साथ बनाता है।
यह सिर्फ एक खेल की बात नहीं है। यह हर उस सफर की कहानी है, जहाँ हम अपने काम, अपने साधन, और खुद के बीच तालमेल बैठाते हैं। आप इसे किसी भी नजरिए से देख सकते हैं—खेलने के, जीतने के, या सीखने के। हर नजरिए में कुछ अपना ही जादू है।
और शायद, खेल का असली आनंद इसी में है कि हम इसे अपने नजरिए से परिभाषित करें। यह सफर है 'कहानी तुम्हारी हमारी' में 'अनाड़ी से खिलाड़ी तक की कहानी।'"
"गेंद के साथ खेले वह अनाड़ी, गेंद जिसके साथ खेले वह खिलाड़ी"
"मैंने जो लिखा है, वह आपको कैसा लगा? आपके विचार, सुझाव, या अनुभव जानने की उत्सुकता है। अगर कोई कन्फ्यूजन या सवाल हैं, तो कमेंट में ज़रूर बताएं—आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है!"
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